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History and Evolution of Bhojpuri Cinema: From Origins to Modern

भोजपुरी सिनेमा का इतिहास और विकास (History and Development of Bhojpuri Cinema)

भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री, जिसे प्यार से "भोजीवुड / भोलिवुड" कहा जाता है, भारत की क्षेत्रीय फिल्म उद्योगों में से एक है। यह सिनेमा अपनी सरलता, संस्कृति और भोजपुरी भाषा में बने गानों और कहानियों के लिए प्रसिद्ध है। भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री अब सिर्फ बिहार, यूपी या झारखंड तक ही सीमित नहीं है। बल्कि दुनियाभर में भोजपुरी फिल्मों और गानों के तमाम फैंस है। भोजपुरी में ऐसे कई गाने हैं जो विदेशी पार्टी  में खुब बजाए जाते हैं। यहां तक की कम बजट में शुरू हुई इस फिल्म इंडस्ट्री में एक से बढ़कर एक फिल्मों का निर्माण किया जा रहा है।  क्या कभी आपने सोचा है कि कैसे भोजपुरी सिनेमा की शुरुआत हुई और कैसे बनी पहली फिल्म।

भारत के पहले राष्ट्रपति ने किया था पहल (The first President of India took the initiative)

देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने एक फिल्म समारोह के दौरान भोजपुरी सिनेमा की दिशा में काम करने के लिए फिल्मकारों से कहा था। जिसके बाद उसी समारोह में उत्तरप्रदेश के गजीपुर के निवासी नजीर हुसैन भी उस समारोह में मौजूद थे जिन्होंने बिमल राय की फिल्म दो बिघा जमीन को लिखी थी उन्होंने राजेंद्र प्रसाद को भरोसा दिलाते हुए कहा था की जरुर हम भोजपुरी में एक फिल्म बनायेंगे उन्होंने बिमल रॉय से उनकी भाषा को समझा और भोजपुरी इतिहास की पहली फिल्म 'गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो' लिखी। लेकिन जब फिल्म का स्क्रिप्ट पूरा हुवा तो बिमल रॉय इस फिल्म को हिंदी में बनाना चाहते थे। लेकिन नजीर हुसैन ने इसे भोजपुरी में ही बनाने का फैसला किया। जिसके बाद विमल रॉय ने इस फिल्म से खुद को बहार कर लिया .


ऐसे बनी भोजपुरी की  पहली फिल्म (This is how the first Bhojpuri film was made)

विमल रॉय को इस फिल्म से बहार जाने के बाद नजीर हुसैन को लंबे समय तक अपनी फिल्म पैसा लगाने वाले की तलाश करनी पड़ी। उन्हें बम्बई में कोई भी ऐसा निर्माता नहीं मिल रहा था जो उनकी फिल्म में पैसे लगाने को तैयार हो। बाद में कोयला व्यासायी और सिनेमा हॉल मालिक विश्वनाथ प्रसाद शाहाबादी और जय नारायण लाल द्वारा सहमती मिलने के बाद इस फिल्म में काम सुरु हुवा ।इस फिल्म की निर्देशन बनारस के कुंदन कुमार ने किया था और इसमें कुमारी शारदा और आशीष कुमार ने मुख्य भूमिकाएँ निभाई थीं। फिल्म के लिए एक लाख 50 हजार का बजट तय किया गया। लेकिन तैयार होते होते 5 लाख रुपये खर्च हो गए थे।
इतने रुकावट के बाद भोजपुरी इंडस्ट्री की पहली फिल्म 'गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो' 1963  रिलीज हुई थी और उस दौर में फिल्म ने 80 लाख का कारोबार किया था।

प्रारंभिक दौर (Preliminary Round) (1960-1980)

1960 और 70 के दशक में भोजपुरी सिनेमा ने अपनी जगह बनाई। इस दौर में फिल्में ग्रामीण भारत की कहानियों, पारिवारिक मूल्यों और सामाजिक मुद्दों पर आधारित थीं।
कुछ प्रमुख फिल्में इस युग में बनीं, जैसे:
गंगा मैया तोहे पियारी चढ़इबो (1963) - अभिनेता: नज़ीर हुसैन, अभिनेत्री: कुमारी देवी, बिदेसिया (1963) - अभिनेता: रमेश ठाकुर, अभिनेत्री: कुमारी देवी, लागी नहीं छूटे रामा (1963) - अभिनेता: रमेश ठाकुर, अभिनेत्री: कुमारी देवी, सीता मैया (1964) - अभिनेता: नज़ीर हुसैन, अभिनेत्री: कुमारी देवी, मितवा (1966) - अभिनेता: नज़ीर हुसैन, अभिनेत्री: कुमारी देवी, विधान नाच नचावे (1968) - अभिनेता: नज़ीर हुसैन, अभिनेत्री: कुमारी देवी, ढेर चालकी जिन कारा (1971) - अभिनेता: नज़ीर हुसैन, अभिनेत्री: कुमारी देवी, दंगल (1977) - अभिनेता: रमेश ठाकुर, अभिनेत्री: कुमारी देवी, बालम परदेसिया (1979) - अभिनेता: रमेश ठाकुर, अभिनेत्री: कुमारी देवी, अँचरा के लाज (1980) - अभिनेता: रमेश ठाकुर, अभिनेत्री: कुमारी देवी, बैरी सावन बाजे शहनाई (1983) - अभिनेता: रमेश ठाकुर, अभिनेत्री: कुमारी देवी, गंगा के तीरे तीर (1984) - अभिनेता: रमेश ठाकुर, अभिनेत्री: कुमारी देवी, दूज बिहारी बाबू (1985) - अभिनेता: रमेश ठाकुर, अभिनेत्री: कुमारी देवी, माई का आंचरा (1989) - अभिनेता: रमेश ठाकुर, अभिनेत्री: कुमारी देवी

संकट का दौर (period of crisis) (1980-2000)


1980 के दशक में, भोजपुरी सिनेमा को हिंदी फिल्मों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। इस दौर में, फिल्म निर्माताओं को दर्शकों की रुचि बनाए रखने में कठिनाई हुई। कई भोजपुरी फिल्में कम बजट में बनीं, जिससे गुणवत्ता पर असर पड़ा। 
हालांकि, कुछ फिल्में इस दौरान भी सफल रहीं, लेकिन यह उद्योग अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करता रहा। इस दौर में भोजपुरी सिनेमा ने नए आयामों को छुआ और दर्शकों के दिलों में एक विशेष स्थान बनाया। इस दौर में भोजपुरी सिनेमा की कई यादगार फिल्में रिलीज़ हुईं 
आँचरा के लाज (1980), आँगन के लक्ष्मी (1986), बैरि सावन बाजे शहनाई (1983), बबुआ हमर बहिना तोहरे खातिर (1983), बैरि कंगना (1983), बांसुरिया बाजे (1983), बिटिया भईल सयान (1983), चनवा के टेके चकोर (1981), चुटकी भर सेनूर (1983), दगाबाज बलमा (1988), धरती की आवाज (1981), दूल्हा गंगा पार के (1986), दुल्हिन गजब भईल रामा (1986), गंगा ज्वाला (1987), गंगा के तीरे तीरे (1984), गंगा किनारे मोरा गाँव (1983), गंगा मइया भरदा आचरवा (1983), गंगा सरयू गरख नाथ बाबा तोहे खिचरी चराइबो (1983), घर गृहस्थी (1983), हमार भौजी (1983), हमार दूल्हा (1989), जहाँ बा हे गंगा धार (1983), जय भवानी (1983), लागल चुनरी में दाग (1988), मइ (1989), मइ का आँचर (1989), नइहर के चुनरी (1989), नौटंकी (1989), पान खाये सइयां हमरा (1984), पइजनिया (1985), पिया के गाँव (1985), पिया रखीह (1985), सेनुरवा के लाज (1985), सजनवा के गंगा और गौरी (1983), विंध्यावासिनी (1983), बलम जी गंगा मइया (1991), दिल और दीवार (1992), गंगा किनारे (1992), हमार भौजी (1993), मई रे मइ (1994), निरहुआ रिक्शावाला (1995), ससुरा बड़ा पैसावाला (1996), विदेशिया (1998), दिल का रिश्ता (1999), गंगा (1999)

पुनर्जागरण का दौर (Renaissance period) (2000 के बाद)

2000 के दशक में भोजपुरी सिनेमा ने अपनी नई पहचान बनाई। इस पुनर्जागरण का श्रेय प्रमुख अभिनेताओं और निर्माताओं को जाता है, जिन्होंने इस उद्योग को नई दिशा दी।
इस दौर में फिल्में बड़े बजट में बनने लगीं, और इनकी कहानी में विविधता आई।
ससुरा बड़ा पइसावाला (2004) – मनोज तिवारी, दरोगा बाबू आई लव यू (2005) – दिनेश लाल यादव (निरहुआ), बंधन टूटे ना (2006) – रवि किशन, निरहुआ रिक्शावाला (2008) – दिनेश लाल यादव (निरहुआ), गंगा (2006) – अमिताभ बच्चन और रवि किशन, प्रतिज्ञा (2009) – पवन सिंह, सत्यमेव जयते (2010) – रवि किशन, राम बलराम (2011) – दिनेश लाल यादव (निरहुआ), देवरा बड़ा सतावेला (2012) – पवन सिंह और खेसारी लाल यादव, साथिया (2013) – दिनेश लाल यादव (निरहुआ), राजा बाबू (2015) – खेसारी लाल यादव, बम बम बोल रहा है काशी (2016) – दिनेश लाल यादव (निरहुआ), मुकद्दर का सिकंदर (2017) – खेसारी लाल यादव, बॉर्डर (2018) – निरहुआ और आम्रपाली दुबे, शेर सिंह (2019) – पवन सिंह और आम्रपाली दुबे, लोहा पहलवान (2020) – खेसारी लाल यादव, डोली सजा के रखना (2021) – खेसारी लाल यादव और आम्रपाली दुबे, ग़दर 2 (2022) – पवन सिंह, संघर्ष 2 (2023) – खेसारी लाल यादव, माई (2024) – पवन सिंह
भोजपुरी गाने और फिल्में यूट्यूब और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म पर वायरल होने लगीं, जिससे इस उद्योग को वैश्विक पहचान मिली।

भोजपुरी सिनेमा की लोकप्रियता का रहस्य (The secret of the popularity of Bhojpuri cinema)

भोजपुरी सिनेमा की लोकप्रियता के पीछे इसकी सरलता, सांस्कृतिक जुड़ाव और भावनात्मक कहानियां हैं। यह सिनेमा अपनी जड़ों से जुड़ा है और दर्शकों को उनकी भाषा, परंपरा और रीति-रिवाजों का अहसास कराता है।
  1. ग्रामीण पृष्ठभूमि और अपनी संस्कृति का प्रतिबिंब: कहानियां और संवाद दर्शकों के दिलों को छूते हैं।
  2. लोकप्रिय गाने: गानों में लोक धुन और परंपरागत मिठास होती है, जो हर पीढ़ी को पसंद आती है।
  3. स्टार पावर: दिनेश लाल यादव (निरहुआ), पवन सिंह और खेसारी लाल यादव जैसे अभिनेताओं ने इसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
  4. डिजिटल क्रांति: यूट्यूब और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर गानों और फिल्मों की पहुंच ने इसकी लोकप्रियता को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया।
  5. सामाजिक और पारिवारिक मूल्य: इसकी कहानियां परिवारों और भावनाओं को महत्व देती हैं, जो दर्शकों को जोड़ता है।

भोजपुरी सिनेमा: एक सामाजिक दर्पण (Bhojpuri Cinema: A Social Mirror)

भोजपुरी सिनेमा न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह समाज का दर्पण भी है। इसने अपनी कहानियों, गानों और किरदारों के माध्यम से समाज की समस्याओं, परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहरों को बड़े पर्दे पर उतारा है। भोजपुरी सिनेमा ने ग्रामीण भारत की तस्वीर को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया है। इसमें गरीबी, पलायन, शोषण और किसान संघर्ष जैसे विषयों को प्रमुखता से दिखाया गया है। खासकर, "निरहुआ रिक्शावाला" और "ससुरा बड़ा पइसावाला" जैसी फिल्मों ने आम जनता के जीवन में झांकने का प्रयास किया है।
इस सिनेमा का एक बड़ा पहलू पारिवारिक मूल्यों और रिश्तों को दिखाना है। माता-पिता और बच्चों के रिश्ते, भाईचारे की भावना, और पति-पत्नी के संघर्ष जैसे विषयों ने दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ा है। इसके अलावा, त्योहारों और धार्मिक परंपराओं का चित्रण, जैसे छठ पूजा और होली, दर्शकों को उनकी संस्कृति से जोड़ता है। "गंगा" और "जय मां शेरावाली" जैसी धार्मिक फिल्मों ने भोजपुरी समाज की आस्था को सिनेमा के माध्यम से जीवंत किया है।
महिलाओं की भूमिका भी भोजपुरी सिनेमा में महत्वपूर्ण रही है। फिल्मों ने महिलाओं के संघर्ष, उनके कर्तव्यों और उनकी ताकत को उजागर किया है, हालांकि कुछ आलोचना भी हुई है कि सिनेमा ने कभी-कभी महिलाओं को गलत तरीके से प्रस्तुत किया। इसके साथ ही, सामाजिक मुद्दों जैसे जातिगत भेदभाव, बाल विवाह, दहेज प्रथा और शराबबंदी जैसे विषयों पर आधारित फिल्में समाज को जागरूक करने का काम करती हैं।
भोजपुरी सिनेमा की खासियत यह है कि यह दर्शकों को उनकी जड़ों से जोड़ता है और उनके जीवन की सच्चाई को बड़े पर्दे पर दिखाता है। यह सिनेमा मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक बदलाव का भी एक माध्यम है, जो समाज की अच्छाइयों और बुराइयों को सामने लाने का साहस करता है। भोजपुरी सिनेमा वास्तव में एक ऐसा दर्पण है, जिसमें समाज अपनी वास्तविकता को देख सकता है।

भोजपुरी सिनेमा में बदलाव की जरूरत (There is a need for change in Bhojpuri cinema)

भोजपुरी सिनेमा ने अपने अनूठे ढंग और सांस्कृतिक उत्कृष्टता के माध्यम से काफी प्रसिद्धि प्राप्त की है। लेकिन बदलते समय और दर्शकों की बढ़ती अपेक्षाओं को देखते हुए इसमें कुछ बदलावों की आवश्यकता है। यहां कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार किया जा सकता है:

1. कहानी और विषयवस्तु में नवाचार: (Innovation in story and theme)

भोजपुरी फिल्मों की कहानियों में अक्सर पारंपरिक विषयवस्तु और ग्रामीण जीवन की छवि को प्रमुखता दी जाती है। हालांकि, अब समय आ गया है कि कहानियों में नवाचार लाया जाए और नए, आधुनिक मुद्दों को भी शामिल किया जाए। इससे न केवल युवा पीढ़ी को आकर्षित किया जा सकेगा, बल्कि सिनेमा की विविधता भी बढ़ेगी।

2. तकनीकी उन्नति: (Technological advancement)

बॉलीवुड और हॉलीवुड की तरह, भोजपुरी सिनेमा को भी तकनीकी दृष्टि से उन्नत होने की आवश्यकता है। उन्नत कैमरा तकनीक, वीएफएक्स, और संपादन सॉफ्टवेयर के उपयोग से फिल्में अधिक आकर्षक और गुणवत्तापूर्ण बनाई जा सकती हैं।

3. प्रशिक्षित कलाकार और तकनीशियन: (Trained Artists and Technicians)

फिल्मों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए प्रशिक्षित और प्रतिभाशाली कलाकारों और तकनीशियनों की आवश्यकता है। नये और उभरते हुए कलाकारों को सही मार्गदर्शन और मंच देने से भोजपुरी सिनेमा को नई ऊर्जा मिल सकती है।

4. विपणन और प्रचार-प्रसार: (Marketing and Promotion)

बॉलीवुड फिल्मों की तरह, भोजपुरी फिल्मों को भी वैश्विक स्तर पर प्रचारित और प्रसारित किया जाना चाहिए। सोशल मीडिया, फिल्म फेस्टिवल, और अन्य विपणन माध्यमों का प्रभावी उपयोग कर फिल्मों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई जा सकती है।

5. विविधता और समावेशिता: (Diversity and Inclusion)

भोजपुरी फिल्मों में अधिक विविधता और समावेशिता लाने की आवश्यकता है। विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों, और समुदायों को शामिल कर फिल्में अधिक व्यापक दर्शकों तक पहुंचाई जा सकती हैं।
भोजपुरी सिनेमा में बदलाव की जरूरत न केवल इसके विस्तार और विकास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इसे नए दर्शकों तक पहुंचाने और सिनेमा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए भी आवश्यक है। यदि ये बदलाव लागू किए जाते हैं, तो निश्चित रूप से भोजपुरी सिनेमा एक नए ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है और विश्व मंच पर अपनी पहचान बना सकता है।


Written by - Sagar

Likes (1) comments ( 1 )
2025-01-28 17:39:33

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@x

Good

2025-01-29 19:38:39