
Bhojpuri Pachra Geet (Git), Devi Song के बारे में पूरी जानकारी
भोजपुरी पचरा (देवी) गीत: एक सांस्कृतिक एवं धार्मिक अध्ययन
भोजपुरी संस्कृति में पचरा गीतों का विशेष स्थान है। ये गीत मुख्य रूप से देवी-देवताओं की स्तुति में गाए जाने वाले भक्ति गीत हैं, जो धार्मिक अनुष्ठानों, त्योहारों और लोक परंपराओं के अभिन्न अंग हैं। पचरा गीतों की उत्पत्ति ग्रामीण अंचलों में हुई, जहाँ ये सामूहिक भक्ति और सांस्कृतिक पहचान का माध्यम बने। इन गीतों में देवी दुर्गा, काली, सरस्वती और अन्य हिंदू देवताओं की महिमा का वर्णन मिलता है, साथ ही इनमें लोक जीवन की झलक भी समाई होती है। आधुनिक समय में ये गीत नए कलाकारों और संगीत प्रस्तुतियों के साथ विकसित हुए हैं, लेकिन इनका मूल स्वरूप आज भी श्रद्धा और परंपरा को समर्पित है
पचरा गीत की परिभाषा एवं उत्पत्ति
पचरा शब्द की उत्पत्ति
पचरा शब्द की उत्पत्ति के संदर्भ में विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। कुछ के अनुसार, यह शब्द संस्कृत के "पञ्चरात्र" (पांच रातों) से लिया गया है, जो दुर्गा पूजा के पांच दिनों के अनुष्ठानों से जुड़ा है। अन्य मान्यताओं में इसे "पचरना" (प्रार्थना करना) क्रिया से उत्पन्न माना जाता है, जो भक्ति के अर्थ को दर्शाता है। कुछ के अनुसार पाँच हिस्सों या चरणों में गाये जाने के कारण ‘पचरा’ कहलाते हैं। पचरा गीत सुनने पर भक्त का मन उत्साह से भर जाता है और समूह में ये गीत गाते हुए नृत्य भी किया जाता है।
ऐतिहासिक उद्भव
पचरा गीतों की जड़ें भोजपुरी लोक संस्कृति और वैदिक परंपराओं से जुड़ी हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही भारत में देवी उपासना का प्रचलन रहा है, जिसका प्रभाव पचरा गीतों में देखा जा सकता है। मध्यकाल में भक्ति आंदोलन के दौरान ये गीत लोकभाषाओं में प्रचलित हुए और ग्रामीण समुदायों में इन्हें धार्मिक समारोहों का हिस्सा बनाया गया।
बीमारी के समय, विशेष रूप से चेचक जैसी बीमारियों के लिए पचरा गाने की प्रथा, उस युग की चिकित्सा समझ और उपचार के लिए आध्यात्मिक विश्वासों पर निर्भरता को दर्शाती है। नीम के पेड़ का महत्व, जो एक प्राकृतिक एंटीसेप्टिक है, शीतला माता से गहरा जुड़ा हुआ है और कई पचरा गीतों में इसका उल्लेख मिलता है । यह पारंपरिक ज्ञान और धार्मिक मान्यताओं के बीच घनिष्ठ संबंध को दर्शाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि पचरा भोजपुरी लोक संगीत की एक बहुआयामी अभिव्यक्ति है, जो न केवल भक्ति भावनाओं को व्यक्त करती है बल्कि समुदाय के स्वास्थ्य और कल्याण से भी जुड़ी हुई है।
पचरा गीत कब गाया जाता है?
इन गीतों को विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान और दुर्गापूजा के अवसर पर गाया जाता है। चैत्र (फाल्गुन) और आषाढ़ नवरात्रि में माँ दुर्गा की आराधना के समय इन गीतों का आयोजन होता है। इसके अलावा होली, छठ और अन्य पर्वों पर भी देवी के गुणगान में पचरा गीत गाये जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जब भी माता के मन्दिर में मेला या सामुदायिक आयोजन हो, तब भी पचरा गीतों की प्रतिध्वनि सुनने को मिलती है। कुल मिला कर ये गीत वर्ष में मुख्यतः देवी-पूजा एवं नवरात्रि जैसे शुभ पर्वों पर गाये जाते हैं।
बीमारी के समय, जैसे कि चेचक, खसरा और चिकनपॉक्स, और देवी पूजा के बाद भी इन गीतों का विशेष रूप से गायन किया जाता है । कुछ समुदायों में, दवा देते समय भी पचरा गाने की प्रथा है । देवी पूजा के समापन के बाद, नागाड़ा संगीत के साथ पचरा का प्रदर्शन एक महत्वपूर्ण परंपरा है । व्यक्तिगत या सांप्रदायिक आवश्यकता के समय, जैसे बीमारी या पूजा के बाद आशीर्वाद की कामना, दोनों ही स्थितियों में गाया जाता है। यह भोजपुरी समुदाय के भीतर जीवन के विभिन्न पहलुओं में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।
धर्मग्रंथों में पचरा गीत का उल्लेख
जैसे-तैसे पचरा गीत का सीधे नाम कोई पौराणिक ग्रंथ (जैसे पुराण, रामायण आदि) में नहीं मिलता, पर देवी-पूजा और भक्ति-संगीत का वर्णन अनेक ग्रंथों में मिलता है। उदाहरण स्वरूप, श्रीमद् देवीभागवत पुराण में उल्लेख है कि देवी की आराधना करते समय संगीत व नृत्य अवश्य किया जाए। वहाँ कहा गया है कि पूजा-पाठ के बाद नगाड़ा (ढोलक) वाद्य बजाकर देवी की स्तुति करनी चाहिए, इससे परिवार में सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार “रंग-रास और गीत-संगीत” के साथ देवी की पूजा का विधान दिया गया है। इन ग्रंथों से प्रेरित होकर पचरा जैसी लोकधाराएँ विकसित हुईं, हालांकि पचरा का सीधा नाम इन ग्रंथों में नहीं मिलता।
पचरा गीत का धार्मिक महत्त्व
प्राचीन भारतीय ग्रंथों में "पचरा" शब्द का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। हालांकि, श्रीमद् देवी भागवत जैसे ग्रंथों में भक्ति संगीत और देवी माँ की स्तुति के महत्व पर विस्तार से चर्चा की गई है । उदाहरण के लिए, 11वीं पुस्तक के अध्याय 18 में देवी पूजा के दौरान बांसुरी, मृदंग, मुरज, ढाक और दुंदुभि जैसे वाद्ययंत्रों के साथ संगीत के महत्व का वर्णन किया गया है । श्रीमद् देवी भागवत से देवी पूजा की महानता और संगीत के उपयोग के बारे में विस्तृत अंश प्रस्तुत करता है। इसमें नागाड़ा, बांसुरी, मृदंग, मुरज, दुंदुभि और ढाक जैसे विशिष्ट संगीत वाद्ययंत्रों के महत्व पर भी विस्तार से बताया गया है । इसी प्रकार देवी पूजा के बाद नागाड़ा और पचरा संगीत के संबंध में देवी भागवत के 18वें अध्याय का उल्लेख करता है । इन ग्रंथों में भक्ति संगीत और देवी की स्तुति पर जोर ऐसी भक्ति गायन परंपराओं के लिए एक मजबूत शास्त्रीय आधार प्रदान करता है । इन ग्रंथों में पचरा के साथ उपयोग किए जाने वाले विशिष्ट संगीत वाद्ययंत्रों का उल्लेख इस संबंध को और मजबूत करता है, भले ही "पचरा" शब्द सीधे तौर पर न पाया जाए।
पचरा गीत को कहाँ और कब गाया जाता है?
पचरा गीत भोजपुरी-आंचलिक मन्दिरों, गृहस्थि पूजा-पाठ और सामूहिक भक्ति सभाओं में गाये जाते हैं। विशेषकर नवरात्रि में गाँव-देहात के पंडालों व मंदिरों में शिविर लगाये जाते हैं, जहां महिलाएँ और पुरुष मिलकर पचरा भजन करते हैं। छठ तथा अन्य पर्वों पर भी देवी भक्ति के अंतर्गत ये गीत हो सकते हैं। कथित रूप से, इन्हें स्वच्छता और आरोग्य के लिए प्रचलित माता शीतला की आराधना से भी जोड़ा जाता है, क्योंकि पचरा गीत में शीतला माता की महिमा वर्णित होती है। घर-घर में चलने वाली परम्परा के अनुसार कोई विशेष समय तिथि तय नहीं होती; जब भी परिवार में देवी की स्तुति हो, पचरा गीत शुरू हो जाता है। हालांकि आज इसे मुख्यतः वर्ष में एक-दो बार सम्मान मिलता है, वह है नवरात्रि/दुर्गापूजा का समय।
समय के साथ स्वरूप में परिवर्तन
समय के साथ पचरा गीतों का स्वरूप और प्रस्तुति दोनों बदल गए हैं। पुराने समय में ये गीत केवल ढोलक, मंजीरा जैसे पारंपरिक वाद्यों से गाउँ के सामूहिक आयोजन में गाये जाते थे। मौलिक लोकशैली बनी रहे, इसलिए गीत संवादात्मक (कहानिया कहते-फिरते) या द्वंद्वात्मक (प्रश्न-उत्तर) होते थे। युग परिवर्तन के साथ इनमें आधुनिक संगीत संयोजन शामिल हो गया है – जैसे इलेक्ट्रॉनिक वाद्य, ऑडियो रिकॉर्डिंग और स्टूडियो रिकॉर्डिंग। अब इन्हें सेलिब्रिटी गायकों द्वारा एल्बमों और म्यूजिक वीडियो के रूप में भी रिलीज किया जाता है। प्रस्तुतिकरण में भी बदलाव आया है – पहले महिलाएँ पारम्परिक वस्त्रों में झूल-मंच पर गाती थीं, अब मंच सजावट और डीजे शामिल हो गए हैं। बावजूद इसके, पचरा गीतों की लय, छंद और देवी भक्ति का स्वर अभी भी मुख्य है. सिर्फ सांगीतिक पैकेज नया हुआ है।
कुछ प्रमुख पारंपरिक पचरा गीतों के बोल
पारंपरिक पचरा गीतों की भाषा सहज लोकभाषा में होती है, और उनकी पंक्तियाँ देवी की ममतामयी छवि एवं चैतन्य का चित्रण करती हैं। उदाहरण स्वरूप, निम्नलिखित पंक्तियाँ लोकगीतों में प्रचलित हैं (ये विशिष्ट गीतों के अंश हैं):
“निमिया के डाढ़ मैया झुलेली झुलुअवा …” – जो झूला झूल रही माँ की आराधना का भाव व्यक्त करती है।
“नीम के पत्ता पर तारें डटे, महारानी महिमा चारों ओर फैले…” – जिसमें शीतला या दुर्गा के साथ नीम के वृक्ष का संबंध बतलाया गया है।
“जय हो मैया, बलि ले आवत बाय, मोरे आँगन जगमगाय…” – माँ को स्मरण कर बलि चढ़ाने की बात करती है।
“घुड़़ी चौके में बहार आया, करेजा हलचलाय…” – देवी का सुंदर वर्णन करके भक्त का उन्मुक्त हो जाना दिखाया गया है।
यह बोल गाँव-देहात की आम समझ में होते हैं और भावपूर्ण गायन के माध्यम से इन्हें गूढ़ता दी जाती है। इन लोकगीतों में देवी के विभिन्न रूप – दुर्गा, काली, शीतला आदि का वर्णन मिलता है।
आज के लोकप्रिय पचरा गीत और गायक
आजकल पचरा गीतों ने आधुनिक संगीत बजार में भी जगह बना ली है। कई भोजपुरी एवं गैर-भोजपुरी कलाकारों ने देवी भजन रिकॉर्ड किये हैं। उदाहरण के लिए, शिल्पी राज , शिवानी सिंह , अन्नु दुबे , ज्योति कुमारी इत्यादि गायिकाओं ने “देवी पचरा” भक्तिगीत गाए हैं। वहीं पवन सिंह, मनोज तिवारी, खेसारी लाल यादव, प्रमोद प्रेमी, अंकुश राजा, अरविन्द अकेला, रितेश पांडेय जैसे भोजपुरी फिल्मी गायक भी देवी गीत (जिनमें पचरा गाने शामिल हैं) प्रस्तुत करते रहते हैं। इन गीतों का संगीत आर्य शर्मा , अविनाश एवं डॉ. मनीष आदि ने दिया है। आज के युग में इन गीतों को यूट्यूब, टीवी भजन चैनल और भोजपुरी म्यूजिक एप्स पर खूब पसंद किया जाता है। जैसे-जैसे प्रवासी भारतीय भी अपनी जड़ों से जुड़ते हैं, उन देशों (जैसे सऊदी ,दुबई , अमेरिका ) में भी ये लोकगीत लोकप्रिय होते जा रहे हैं।
पचरा गीत से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण जानकारी
भाषा एवं क्षेत्र: पचरा गीत मुख्यतः भोजपुरी बोलियों (बिहार, पूर्वांचल) में रचे-बसे हैं, लेकिन इनकी लोकप्रियता हिन्दी के अन्य क्षेत्रीय रूपों और हिंदीभाषी श्रृंखला में भी बढ़ी है।
विविध देवी रूप: इन गीतों में अक्सर माँ दुर्गा के विविध अवतार जैसे काली, शीतला, लक्ष्मी आदि की स्तुति होती है। विशेषकर शीतला पूजा के अवसर पर पचरा गाने की परम्परा देखने को मिलती है।
स्थानीय वाद्य: पारंपरिक रूप से ढोलक, मंजीरा, हारमोनियम आदि वाद्यों के साथ गाया जाता है। कुछ जगह नगाड़ा (नगारा) भी बजाया जाता है, जिससे उत्सव में आनन्द भर जाता है।
लोक-साहित्य में जगह: भले ही शासकीय ग्रंथों में कहीं न मिले, पर लोक साहित्य एवं भोजपुरी लोकगीत संग्रहों में पचरा गीतों के अंश मिलते हैं। इनमें अति प्राचीन लोककथाओं और देवी पुराणों की आंशिक झलक होती है।
समाज में भूमिका: पचरा गीत सामाजिक समरसता का प्रतीक हैं; गाँव के बड़े भी इन्हें सुनकर ताजगी और उल्लास महसूस करते हैं। महिलाएँ विशेषत: झूला-नृत्य के साथ देवी की स्तुति करती हैं। युवा गायिका-संगीतकार भी इन गीतों को नए रंग में प्रस्तुत कर रही हैं, जिससे पचरा परंपरा जीवित बनी हुई है।
पचरा गीत न सिर्फ एक लोकभक्ति विधा है, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर है जो देवी की महिमा गाते हुए समुदाय को एकजुट करता है। इन गीतों में लोकजीवन की सादगी, माँ दुर्गा के प्रति श्रद्धा और भोजपुरी संस्कृति का समृद्ध राग झलकता है।
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