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Bhikhari Thakur : भोजपुरी के शेक्सपियर का जीवनी

भिखारी ठाकुर: भोजपुरी के शेक्सपियर

भिखारी ठाकुर एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने अपनी कला और साहित्य के माध्यम से भोजपुरी भाषा और संस्कृति को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। वे न केवल एक लोक कलाकार, नाटककार और कवि थे, बल्कि एक समाज सुधारक भी थे, जिन्होंने अपने कार्यों से समाज में जागरूकता और बदलाव की लहर पैदा की। उनका जन्म 18 दिसंबर 1887 को बिहार के सारण जिले के कुतुबपुर गाँव में हुआ था, और 10 जुलाई 1971 को 83 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उन्हें "भोजपुरी के शेक्सपियर" कहा जाता है, और यह उपाधि उनके साहित्यिक और सामाजिक योगदान को पूरी तरह से प्रतिबिंबित करती है।

प्रारंभिक जीवन

भिखारी ठाकुर का जन्म एक साधारण नाई परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम दलसिंगार ठाकुर और माता का नाम शिवकली देवी था। नाई जाति उस समय सामाजिक रूप से निम्न मानी जाती थी, लेकिन भिखारी के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक थी, जिसके कारण उनका बचपन अपेक्षाकृत सुखद रहा। छोटी उम्र से ही भिखारी में एक असाधारण जिज्ञासा और बुद्धिमत्ता दिखाई देती थी। उन्हें गाँव की लोक कथाएँ, गीत और परंपराएँ बहुत आकर्षित करती थीं। ये शुरुआती प्रभाव बाद में उनके साहित्य और नाटकों में स्पष्ट रूप से दिखाई दिए।

शिक्षा और प्रारंभिक करियर

भिखारी ठाकुर को औपचारिक स्कूली शिक्षा का अवसर नहीं मिला, लेकिन उनकी सीखने की ललक ने उन्हें कभी पीछे नहीं हटने दिया। उन्होंने खुद से भोजपुरी और हिंदी पढ़ना-लिखना सीखा। इसके अलावा, स्थानीय विद्वानों से संपर्क के जरिए उन्होंने संस्कृत का भी कुछ ज्ञान अर्जित किया। अपने करियर की शुरुआत में, भिखारी ने अपने जाति के पारंपरिक पेशे—नाई का काम—अपनाया। लेकिन उनका मन इस काम में नहीं रमा। उनकी आत्मा कला और साहित्य की ओर खींची चली गई। जल्द ही, उन्होंने भोजपुरी में कविताएँ और गीत लिखना शुरू किया, जो गाँव वालों के बीच बेहद लोकप्रिय हो गए।

प्रमुख रचनाएँ

भिखारी ठाकुर की असली पहचान उनके नाटकों और लोकगीतों से बनी। उन्होंने अपने सृजन के माध्यम से समाज की कुरीतियों पर प्रहार किया और आम लोगों की भावनाओं को आवाज दी। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं:

1. बिदेसिया

"बिदेसिया" भिखारी ठाकुर का सबसे प्रसिद्ध नाटक है, जिसे उन्होंने 1920 के दशक में लिखा। यह नाटक प्रवासियों की पीड़ा को मार्मिक ढंग से दर्शाता है। इसमें एक व्यक्ति की कहानी है जो रोजगार की तलाश में शहर चला जाता है, लेकिन पीछे उसकी पत्नी गाँव में अकेले दुख भोगती है। इस नाटक के गीत इतने भावपूर्ण हैं कि आज भी भोजपुरी लोक गायक इन्हें गाते हैं, और ये सुनने वालों के दिलों को छू लेते हैं।

2. गंगा स्नान

यह नाटक धार्मिक अंधविश्वास और पाखंड पर करारा व्यंग्य करता है। इसमें एक महिला की कहानी है जो पवित्र गंगा में स्नान करने जाती है, लेकिन वहाँ उसे समाज के लालची और शोषक लोगों का शिकार होना पड़ता है। इस रचना के जरिए भिखारी ने धर्म के नाम पर होने वाले अन्याय को उजागर किया।

3. बेटी बेचवा

"बेटी बेचवा" दहेज प्रथा के खिलाफ एक शक्तिशाली नाटक है। इसमें दिखाया गया है कि गरीब माता-पिता आर्थिक मजबूरी के कारण अपनी बेटी को धनी लेकिन बूढ़े व्यक्ति से शादी करने के लिए मजबूर होते हैं। यह नाटक समाज में व्याप्त इस कुरीति के दुष्परिणामों को सामने लाता है।

4. विधवा विलाप

यह नाटक विधवा महिलाओं के दुख और उनके प्रति समाज के क्रूर व्यवहार को चित्रित करता है। भिखारी ठाकुर ने इस रचना के जरिए विधवाओं की पीड़ा को आवाज दी और समाज से उनके प्रति संवेदना की माँग की।

5. नौटंकी और लोकगीत

भिखारी ठाकुर ने नौटंकी और लोकगीतों को भी एक नया आयाम दिया। उनके गीतों में हास्य, व्यंग्य और गंभीर सामाजिक संदेशों का अनूठा मिश्रण होता था। वे न केवल मनोरंजन करते थे, बल्कि लोगों को शिक्षित भी करते थे।

समाज पर प्रभाव

भिखारी ठाकुर के कार्यों का प्रभाव केवल साहित्य तक सीमित नहीं था; उन्होंने समाज को बदलने की दिशा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके नाटक और गीत मनोरंजन से कहीं बढ़कर थे—वे समाज सुधार के औजार थे।
  • प्रवासियों की आवाज: भिखारी ठाकुर भोजपुरी प्रवासियों की पीड़ा को व्यक्त करने वाले पहले लेखक थे। उस समय, जब लाखों लोग रोजगार के लिए अपने गाँव छोड़कर शहरों की ओर जा रहे थे, भिखारी ने उनके दर्द को अपनी रचनाओं में स्थान दिया।
  • महिला अधिकार: उनके नाटकों में महिलाओं की समस्याओं—चाहे वह दहेज हो, विधवाओं का शोषण हो, या धार्मिक पाखंड का शिकार होना—को प्रमुखता से उठाया गया।
  • भोजपुरी भाषा को सम्मान: जब भोजपुरी को केवल एक बोली माना जाता था, भिखारी ठाकुर ने अपने साहित्य के जरिए इसे एक समृद्ध साहित्यिक भाषा के रूप में स्थापित किया।
  • समाज सुधार: उनके कार्यों ने जाति भेदभाव, धार्मिक अंधविश्वास और अन्य कुरीतियों पर सवाल उठाए, जिससे लोगों में जागरूकता बढ़ी।

व्यक्तिगत जीवन

भिखारी ठाकुर का विवाह सुखदेई देवी से हुआ था, और उनके कई बच्चे थे। अपनी प्रसिद्धि के बावजूद, वे एक साधारण जीवन जीते थे। वे अपनी जड़ों से हमेशा जुड़े रहे और गाँव की मिट्टी की सादगी उनके व्यक्तित्व में झलकती थी। उनकी विनम्रता और कला के प्रति समर्पण ने उन्हें लोगों के दिलों में विशेष स्थान दिलाया। यह भी उल्लेखनीय है कि भिखारी केवल लेखक ही नहीं, बल्कि एक अभिनेता और निर्देशक भी थे। वे अपने नाटकों में खुद अभिनय करते थे, जिससे उनके पात्र जीवंत हो उठते थे।

अंतिम वर्ष और मृत्यु

अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी भिखारी ठाकुर रचनात्मक बने रहे। हालाँकि उम्र और स्वास्थ्य की समस्याओं ने उन्हें प्रभावित किया, फिर भी वे लिखते और प्रदर्शन करते रहे। 10 जुलाई 1971 को, 83 वर्ष की आयु में, इस महान कलाकार ने अंतिम साँस ली। लेकिन उनकी मृत्यु उनके प्रभाव का अंत नहीं थी; उनकी कृतियाँ आज भी जीवित हैं।

विरासत

भिखारी ठाकुर की विरासत उनके नाटकों, गीतों और सामाजिक संदेशों में बसी है। भोजपुरी भाषी क्षेत्रों में उनके कार्य आज भी प्रदर्शित होते हैं और नई पीढ़ियों को प्रेरित करते हैं। उन्हें "भोजपुरी के शेक्सपियर" की उपाधि दी गई है, जो उनके साहित्यिक और सामाजिक योगदान का सम्मान करती है। ग्रामीण भारत में थिएटर को समाज सुधार के माध्यम के रूप में इस्तेमाल करने वाले वे पहले व्यक्तियों में से एक थे। उनकी रचनाएँ आज भी हमें यह सिखाती हैं कि कला सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि बदलाव का एक शक्तिशाली हथियार भी हो सकती है।

समापन

भिखारी ठाकुर का जीवन एक ऐसी मिसाल है जो हमें सिखाती है कि प्रतिभा और मेहनत से कोई भी व्यक्ति अपनी परिस्थितियों से ऊपर उठ सकता है और समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। एक साधारण नाई परिवार से निकलकर भोजपुरी साहित्य के शिखर तक पहुँचने वाले इस महान कलाकार ने हमें कला की शक्ति दिखाई। यदि आप उनके नाटकों और गीतों से अभी तक परिचित नहीं हुए हैं, तो मैं आपको प्रेरित करता हूँ कि उनकी रचनाओं को सुनें और देखें। उनकी कहानियाँ और संदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे। भिखारी ठाकुर केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक प्रेरणा हैं—एक ऐसी प्रेरणा जो हमें अपने समाज को बेहतर बनाने के लिए प्रोत्साहित करती है।

Written by - Sandeep

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2025-03-19 16:02:29

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