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Chaita Song History, Cultural Significance & Top Artists

चैता : चैत के महीने की सांस्कृतिक धरोहर और इसकी संगीतमय यात्रा

भारत की लोक संस्कृति में ऋतुएं और त्योहार गीतों-संगीत के माध्यम से जीवंत हो उठते हैं। चैत का महीना (हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास) जब आता है, तो उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और भोजपुरी अंचल के गाँव-शहरों में "चैता" गीतों की मधुर स्वरलहरियाँ गूँजने लगती हैं। यह गीत न सिर्फ़ वसंत के आगमन का संदेशवाहक है, बल्कि सदियों पुरानी सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है। 

चैता गीत की उत्पत्ति: इतिहास और मिथक

चैता गीत का इतिहास भोजपुरी क्षेत्र की कृषि और लोक जीवन से जुड़ा है। मान्यता है कि इसकी शुरुआत *मध्यकालीन भारत* में हुई, जब ग्रामीण अंचलों में ऋतु परिवर्तन और फसलों की बुआई-कटाई के साथ संगीत को जोड़ा जाने लगा। चैत्र मास वसंत का प्रतीक है, जब प्रकृति में नवजीवन का संचार होता है। इसी उल्लास को अभिव्यक्त करने के लिए स्त्री-पुरुष खेतों में, नदी किनारे, या चौपालों पर एकत्र होकर चैता गीत गाते थे।  
कुछ विद्वानों के अनुसार, चैता गीतों की जड़ें *भक्ति आंदोलन* से भी जुड़ी हैं। संत कवियों ने इसमें राम-सीता की कथा, प्रकृति की स्तुति, और सामाजिक जीवन के दृश्यों को शामिल किया। मिथिला और भोजपुर क्षेत्र में यह परंपरा "छठ गीत" और "कजरी" की तरह ही पनपी, लेकिन इसका स्वरूप अधिक उत्सवधर्मी रहा।

चैता गीत की विशेषताएँ: सुर, शैली, और विषय

स्वर और वाद्ययंत्र: चैता गीतों में मुख्य रूप से *दुखड़ा ताल* का प्रयोग होता है। सुरीले स्वरों के साथ ढोलक, हारमोनियम, और मंजीरे की धुनें इसे विशिष्ट बनाती हैं।  
भाषा: सरल भोजपुरी बोली में रचे ये गीत स्थानीय बोलचाल से जुड़े होते हैं, जैसे:  
   "चैत मासे घन गरजे, बरखा होए निरमोहना...  
   सजनी के चितवा में, बिजुरी कड़के सुनो रे..."  
विषय: इन गीतों में प्रेम, विरह, प्रकृति वर्णन, और लोक जीवन की झलक मिलती है। कई गीतों में राम-सीता की कथा या राधा-कृष्ण की लीलाएँ भी गाई जाती हैं।

समय के साथ बदलता स्वरूप

20वीं सदी तक चैता गीत गाँवों तक सीमित थे, लेकिन *रेडियो और सिनेमा* के आगमन के बाद यह शहरी संस्कृति का हिस्सा बन गए। 1980-90 के दशक में बिहार की लोक गायिका *शारदा सिन्हा* ने चैता गीतों को राष्ट्रीय पहचान दिलाई। उनके गाए "कइसे जियबो चैत मास में..." और "हो रामा रे सजनी..." जैसे गीत आज भी लोकप्रिय हैं।  
21वीं सदी में चैता ने *डिजिटल प्लेटफॉर्म* का रुख किया। यूट्यूब और टिकटॉक पर युवा कलाकार इसे नए अंदाज़ में पेश कर रहे हैं। कुछ गीतों में पॉप और इलेक्ट्रॉनिक संगीत का मिश्रण भी देखने को मिलता है। हालाँकि, पारंपरिक वादियों का मानना है कि इससे गीतों का मूल स्वरूप खतरे में है।

समय के साथ बदलता स्वरूप

पारंपरिक से आधुनिक तक: पहले यह गीत ग्रामीण महिलाएँ समूह में गाती थीं, लेकिन अब इसे स्टूडियो प्रोडक्शन और रिमिक्स के साथ पेश किया जाता है।

प्रसिद्ध कलाकार:
गिरिजा देवी (ठुमरी की रानी): इन्होंने चैता को शास्त्रीय संगीत की मंचों पर गाकर नई पहचान दी।
मुन्ना सिंह: 1998 के हिट एल्बम "अमवा के पिसेली चटनीया" ने चैता को युवाओं का फेवरिट बना दिया।
खेसारी लाल यादव: इनके गीत "घाम लगता ये राजा घाम लगता " और "भतार बिना फटता ओठ " आज भी बजते हैं।
नए सितारे: पवन सिंह का "चैता के कटनी" और विशाल गगन का "जोड़ा नाइखे भौजी",  शिल्पी राज  सोशल मीडिया पर वायरल हुए।
भोजपुरी के चैता गाने का प्लेलिस्ट : यहाँ 

आधुनिक चुनौतियाँ और संरक्षण के प्रयास

वाणिज्यिकरण: कई चैता गीत अब फिल्मी गानों की तरह बनाए जाने लगे हैं, जिसमें अश्लीलता या अतिशयोक्तिपूर्ण बोल शामिल होते हैं।  
सांस्कृतिक विस्मृति: नई पीढ़ी का रुझान पश्चिमी संगीत की ओर होने से लोक गीतों की लोकप्रियता घटी है।  
संरक्षण: सरकारी संस्थाएँ जैसे *भोजपुरी अकादमी* और *लोक कलाकार* समय-समय पर चैता महोत्सव आयोजित कर इस परंपरा को जीवित रखने की कोशिश कर रही हैं।  

निष्कर्ष: लोक संस्कृति का अमर सुर

चैता गीत सिर्फ़ एक संगीत शैली नहीं, बल्कि भोजपुरी समाज की सामूहिक भावनाओं का दर्पण है। आज भी चैत्र मास में गाँवों में सूर्योदय से पहले महिलाएँ समूह में चैता गाती हैं, तो लगता है कि यह परंपरा अमर है। ज़रूरत है कि हम इसे आधुनिकता के साथ सामंजस्य बिठाकर आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाएँ। 

Written by - Sagar

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2025-04-05 17:16:34

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