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Eid ul-Fitr, history, tradition, zakat and celebration

ईद उल-फ़ितर : इतिहास, परंपरा, ज़कात‑ए‑फितर और उत्सव 

ईद उल-फित्र, जिसे "रमज़ान ईद" या "मीठी ईद" के नाम से भी जाना जाता है, इस्लाम के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह रमज़ान के पवित्र महीने के समापन का प्रतीक है, जिसमें मुसलमान रोज़ा (उपवास) रखते हैं। यह त्योहार शव्वाल महीने की पहली तारीख को मनाया जाता है और खुशी, एकता, दान, और अल्लाह के प्रति कृतज्ञता का अवसर होता है। ईद उल-फित्र के इतिहास, इसकी शुरुआत, कुरान और हदीस में इसके उल्लेख, ज़कात की जानकारी, वर्तमान समय में ज़कात की राशि, इसे मनाने का सही तरीका, और इसके महत्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

ईद की शुरुआत कब हुई और पहली बार किसने मनाई?

ईद उल-फित्र की शुरुआत इस्लाम के उदय के साथ हुई, विशेष रूप से पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के समय से। यह त्योहार पहली बार 624 ईस्वी में मदीना में मनाया गया था, जब पैगंबर मुहम्मद ने मदीना में प्रवास (हिजरत) के बाद इसे स्थापित किया। हदीस के अनुसार, जब पैगंबर मदीना पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि वहां के लोग जहिलियत (अज्ञानता के युग) के दो दिनों में उत्सव मनाते थे। पैगंबर ने कहा, "अल्लाह ने तुम्हारे लिए इन दो दिनों को दो बेहतर दिनों से बदल दिया है: ईद उल-फित्र और ईद उल-अज़हा।" (सुन्नन अबी दाउद, हदीस 1134)। इस तरह, ईद उल-फित्र की पहली औपचारिक शुरुआत पैगंबर मुहम्मद और उनके सहाबियों (साथियों) ने की।

ईद का इतिहास

ईद उल-फित्र का इतिहास रमज़ान के महत्व से जुड़ा है। रमज़ान वह महीना है जिसमें कुरान पहली बार पैगंबर मुहम्मद पर नाज़िल (उतारा) हुआ था। यह 30 दिनों का उपवास, प्रार्थना, और आत्म-संयम का समय होता है। ईद उल-फित्र इस कठिन लेकिन आध्यात्मिक रूप से समृद्ध महीने के अंत का उत्सव है। इस्लामिक कैलेंडर चंद्रमा पर आधारित है, इसलिए ईद की तारीख हर साल बदलती है। यह त्योहार केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह लोगों को एकजुट करता है।

कुरान में ईद का उल्लेख

कुरान में "ईद" शब्द का सीधा उल्लेख केवल एक बार सूरह अल-माइदा (5:114) में मिलता है, जहां इसका अर्थ "त्योहार" या "उत्सव" है। इस आयत में हज़रत ईसा (यीशु) अल्लाह से प्रार्थना करते हैं कि वह उनके लिए स्वर्ग से भोजन की मेज भेजे, ताकि यह उनके लिए एक "ईद" (उत्सव) बन जाए। हालांकि कुरान में ईद उल-फित्र का विशिष्ट उल्लेख नहीं है, लेकिन रमज़ान और उपवास का महत्व सूरह अल-बकराह (2:183-185) में विस्तार से बताया गया है। इन आयतों में कहा गया है कि उपवास मुसलमानों के लिए अनिवार्य है ताकि वे तकवा (ईश्वर-भय) प्राप्त करें, और रमज़ान के अंत में ईद उस इनाम के रूप में देखी जाती है।

हदीस में ईद का उल्लेख

हदीस (पैगंबर की शिक्षाएं) में ईद उल-फित्र के बारे में कई उल्लेख हैं, जो इसके महत्व और इसे मनाने के तरीके को स्पष्ट करते हैं। कुछ प्रमुख हदीस निम्नलिखित हैं:
  1. ईद की स्थापना: "पैगंबर मदीना आए और देखा कि लोग दो दिनों में मनोरंजन करते थे। उन्होंने कहा, 'अल्लाह ने इनके बदले तुम्हें दो बेहतर दिन दिए हैं: ईद उल-फित्र और ईद उल-अज़हा।'" (सुन्नन अबी दाउद, हदीस 1134)
  2. ईद की नमाज़: "पैगंबर ईद उल-फित्र के दिन नमाज़ से पहले कुछ खजूर खाते थे।" (सहीह बुखारी, हदीस 953)
  3. ज़कात-उल-फित्र: "पैगंबर ने ज़कात-उल-फित्र को अनिवार्य किया, ताकि यह रोज़ेदार के लिए शुद्धिकरण और गरीबों के लिए भोजन का साधन बने।" (अबू दाउद, हदीस 1609)
  4. खुशी का दिन: "ये खाने-पीने और अल्लाह के ज़िक्र (स्मरण) के दिन हैं।" (सहीह बुखारी)

ज़कात क्या है और इसे कैसे अदा किया जाता है?

ज़कात इस्लाम के पांच स्तभ में से तीसरा स्तम्भ है, जिसका अर्थ है अपनी संपत्ति का एक हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को देना। यह अनिवार्य दान है जो हर उस मुसलमान पर लागू होता है जिसके पास निसाब (न्यूनतम संपत्ति) होती है। ज़कात आम तौर पर सालाना 2.5% संपत्ति पर दी जाती है, लेकिन ईद उल-फित्र के संदर्भ में "ज़कात-उल-फित्र" की बात होती है, जो अलग है।

ज़कात-उल-फित्र एक विशेष दान है जो रमज़ान के अंत में और ईद की नमाज़ से पहले अदा करना अनिवार्य है। इसे "फित्राना" भी कहा जाता है। इसका उद्देश्य रोज़ेदारों के छोटे-मोटे पापों को शुद्ध करना और गरीबों को ईद की खुशियों में शामिल करना है। इसे भोजन (जैसे गेहूं, चावल, खजूर) या इसके मौद्रिक मूल्य के रूप में दिया जा सकता है।

वर्तमान समय में ज़कात-उल-फित्र की राशि

10 मार्च 2025 तक, ज़कात-उल-फित्र की राशि स्थानीय बाजार में मुख्य भोजन की कीमत पर आधारित होती है। यह आम तौर पर एक सा’ (लगभग 2.5-3 किलोग्राम) भोजन के बराबर होती है। भारत में, यह राशि प्रति व्यक्ति लगभग 70-150 रुपये के बीच हो सकती है, जो गेहूं, चावल, या खजूर की कीमत पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए:
  • गेहूं: 2.5 किलो की कीमत (लगभग 70-100 रुपये)
  • चावल: 2.5 किलो की कीमत (लगभग 100-150 रुपये) यह राशि हर साल और क्षेत्र के अनुसार बदल सकती है।

ज़कात-उल-फित्र किस पर अनिवार्य है?

ज़कात-उल-फित्र हर उस मुसलमान पर अनिवार्य है जो आर्थिक रूप से सक्षम है और जिसके पास निसाब (न्यूनतम संपत्ति) है। यह न केवल खुद के लिए, बल्कि अपने परिवार के हर सदस्य (बच्चों, पत्नी, माता-पिता) के लिए भी देना होता है, भले ही वे छोटे बच्चे हों।

ज़कात की गणना कैसे करें?

ज़कात-उल- माल:

  • यदि किसी मुसलमान की संपत्ति निसाब (न्यूनतम मान) से अधिक हो और वह एक लूनी वर्ष तक बनी रहे, तो उस पर 2.5% की दर से ज़कात देनी होती है।
  • उदाहरण स्वरूप: यदि किसी के पास 1,00,000 रुपये की बचत है, तो ज़कात = 1,00,000 × 0.025 = 2,500 रुपये।

ज़कात-उल-फ़ितर:

  • यह उपवास के महीने के अंत में हर परिवार के प्रत्येक सदस्य (बच्चे सहित, यदि उनकी देखरेख हो) के लिए निर्धारित है।
  • हदीस के अनुसार, यह एक "साअ" (मात्रा) भोजन के बराबर होती है। पारंपरिक रूप से, एक साअ गेहूँ, जौ, खजूर या किशमिश की माप है। आधुनिक समय में इसे मौद्रिक मूल्य में भी अदा किया जा सकता है, जो क्षेत्रीय स्तर पर तय होता है।

ज़कात किन-किन को दें ?

कुरान (9:60) में ज़कात देने के लिए आठ वर्गों का उल्लेख है:
  1. फुक़ारा (गरीब): जिनके पास न्यूनतम आजीविका के साधन न हों।
  2. मसाकीन (जरूरतमंद): जो अत्यंत कमी में जीवन यापन कर रहे हों।
  3. ज़कात कलेक्टर्स: जो ज़कात संग्रह करने के लिए नियुक्त हों।
  4. मुअल्लफत-कुलूब (दिलों को मोहने वाले): जिनके दिलों को इस्लाम की ओर लाने के लिए।
  5. फिरिकाब (दास मुक्ति): जो दास या गुलामों की मुक्ति के लिए हो।
  6. घारिमीन (कर्ज़दार): जो कर्ज में डूबे हों।
  7. फी सबीलील्लाह (ईश्वर के मार्ग में): इस्लाम के प्रचार, लड़ाई या समाज सुधार के कार्यों के लिए।
  8. इब्नु अस-सीबिल (यात्री): जो यात्रा में फंस गए हों।

ईद मनाने का सही तरीका

ईद उल-फित्र को सुन्नत (पैगंबर की परंपरा) के अनुसार मनाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाते हैं:
  1. गुस्ल (नहाना): ईद की सुबह नहाना सुन्नत है।
  2. अच्छे कपड़े पहनना: नए या सबसे अच्छे कपड़े पहनें।
  3. खजूर खाना: नमाज़ के लिए निकलने से पहले कुछ खजूर खाएं (अजीब संख्या में, जैसे 3, 5)।
  4. तकबीर पढ़ना: "अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाहु, वल्लाहु अकबर" को ईद की रात से लेकर नमाज़ तक पढ़ें।
  5. ईद की नमाज़: मस्जिद या ईदगाह में दो रकात नमाज़ अदा करें, जिसमें अतिरिक्त तकबीरें होती हैं।
  6. ज़कात-उल-फित्र अदा करना: नमाज़ से पहले यह दान दे दें।
  7. खुशियां बांटना: परिवार, दोस्तों और पड़ोसियों से मिलें, "ईद मुबारक" कहें, और उपहारों का आदान-प्रदान करें।
  8. खाना-पीना: स्वादिष्ट व्यंजन जैसे सेवइयां, बिरयानी, और मिठाइयां बनाएं और साझा करें।

ईद का महत्व

ईद उल-फित्र का महत्व कई स्तरों पर है:
  • आध्यात्मिक: यह रमज़ान के बाद अल्लाह की कृपा और इनाम का प्रतीक है।
  • सामाजिक: यह एकता, भाईचारा, और माफी को बढ़ावा देता है।
  • दान: ज़कात-उल-फित्र के माध्यम से गरीबों को खुशियों में शामिल करना।
  • कृतज्ञता: यह अल्लाह के प्रति आभार व्यक्त करने का अवसर है।

संबंधित विषय: रमज़ान और ईद का आध्यात्मिक संबंध

ईद उल-फित्र और रमज़ान का गहरा आध्यात्मिक संबंध है। रमज़ान वह महीना है जिसमें मुसलमान सुबह से शाम तक रोज़ा रखते हैं, नमाज़ पढ़ते हैं, और कुरान का पाठ करते हैं। यह आत्म-संयम, धैर्य, और अल्लाह के प्रति समर्पण का समय है। कुरान के अनुसार, "रमज़ान वह महीना है जिसमें कुरान उतारा गया, जो लोगों के लिए मार्गदर्शन और सही-गलत के बीच अंतर का साधन है।" (सूरह अल-बकराह, 2:185)

रमज़ान के दौरान मुसलमान न केवल भोजन और पानी से परहेज करते हैं, बल्कि गलत विचारों, बुरे शब्दों, और नकारात्मक व्यवहार से भी दूर रहते हैं। ईद उल-फित्र इस कठिन यात्रा के सफल समापन का उत्सव है। यह एक नई शुरुआत का प्रतीक है, जहां लोग अपने पापों से शुद्ध होकर आगे बढ़ते हैं। हदीस में कहा गया है, "जो रमज़ान को ईमान और इनाम की नीयत से रोज़ा रखता है, उसके पिछले सारे गुनाह माफ हो जाते हैं।" (सहीह बुखारी)

ईद का आध्यात्मिक महत्व इस बात में भी है कि यह हमें याद दिलाता है कि सच्ची खुशी अल्लाह की इबादत और दूसरों की मदद में है। ज़कात-उल-फित्र इस सिद्धांत को मजबूत करता है कि इस्लाम में संपत्ति का एक हिस्सा गरीबों का हक है। इस तरह, रमज़ान और ईद एक-दूसरे के पूरक हैं—रमज़ान हमें आत्म-अनुशासन सिखाता है, और ईद हमें उस अनुशासन के फल का आनंद लेने का मौका देता है।




Written by - Sagar

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2025-03-10 15:44:20

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