
What is Birha Folk, History and Significance of Bhojpuri Birha, Famous Birha in Bhojpuri
बिरहा: भोजपुरी लोकगीत की आत्मा
आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम अक्सर अपनी जड़ों को भूल जाते हैं। लेकिन कुछ ऐसी चीजें हैं जो हमें हमारी संस्कृति और परंपराओं से जोड़े रखती हैं। उन्हीं में से एक है बिरहा—एक ऐसा लोकगीत जो उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के भोजपुरी भाषी इलाकों में सदियों से गूंजता आ रहा है। बिरहा सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि भावनाओं का समंदर है, जो प्रेम, विरह, दर्द और समाज के मुद्दों को बयां करता है। तो चलिए, आज हम बिरहा की इस खूबसूरत दुनिया में गोता लगाते हैं और जानते हैं कि आखिर बिरहा है क्या, इसका इतिहास क्या है, और आज के दौर में इसकी क्या अहमियत है।
बिरहा क्या है?
बिरहा बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड के बोलचाल की भाषा भोजपुरी में गाए जाने वाला एक लोकगीत है, जो विरह (बिछड़ने का दर्द) की अभिव्यक्ति को केंद्र में रखता है। यह गीत शैली प्रेम, विरह, और सामाजिक संघर्षों को इतने मार्मिक अंदाज़ में पिरोती है कि सुनने वाला भावनाओं के सागर में डूब जाता है। बिरहा का शाब्दिक अर्थ है "विरह गीत", जो संस्कृत शब्द विरह से निकला है। यह मुख्य रूप से अहीर (यादव) समुदाय से जुड़ा है, लेकिन समय के साथ सभी वर्गों की आवाज़ बन गया
बिरहा की खासियत यह है कि यह दो पक्षों के बीच संवाद की तरह होता है। एक पक्ष अपनी बात कहता है, और दूसरा पक्ष उसी छंद में जवाब देता है। इसमें छंदों की कोई सीमा नहीं होती, और गीत की लय के साथ यह बदलता रहता है। यह शैली इतनी गहरी और भावुक होती है कि सुनने वाले को अपने साथ बहा ले जाती है। इसमें खरताल नामक वाद्य यंत्र का इस्तेमाल होता है, जो इसकी पहचान बन गया है।
इतिहास: कैसे शुरू हुई बिरहा की यात्रा?
प्रारंभिक रूप – खड़ी बिरहा:
150 साल पहले बिरहा का प्राचीन स्वरूप खड़ी बिरहा था, जिसमें दो पंक्तियों के दोहे बिना किसी वाद्ययंत्र के गाए जाते थे। इन गीतों में रामायण और महाभारत के प्रसंगों को भी शामिल किया जाता था। उदाहरण के लिए:
"राम की लड़इया के ना पाइबे रावणवा, जेकरी बगल में हनुमान..."
बिहारी लाल यादव का योगदान:
बिहारी लाल यादव को बिरहा का जनक माना जाता है। उन्होंने एक प्राचीन शैली, जिसे खरी बिरहा कहा जाता था, को संशोधित किया। खरी बिरहा में सिर्फ दो पंक्तियों का प्रयोग होता था, लेकिन बिहारी लाल ने इसमें असीमित संख्या में कविताएँ शामिल कीं।
19वीं सदी में बिहारी लाल यादव ने खड़ी बिरहा को आधुनिक रूप दिया। उन्होंने गीतों में अंतरा और तेरी जैसे नए प्रकार जोड़े, साथ ही खरताल (लकड़ी का ताल वाद्य) को शामिल किया। इससे बिरहा शहरों तक पहुँचा और मंदिरों में प्रदर्शित होने लगा
बिहारी लाल ने बिरहा को बनारस जैसे शहरों में मंदिरों में गाकर लोकप्रिय बनाया। धीरे-धीरे, उनके कई शिष्य बने, और इन शिष्यों ने अपने-अपने शिष्य बनाए, जिससे कई अखाड़े (समूह) बने। इन अखाड़ों ने बिरहा की परंपरा को आगे बढ़ाया और इसे सामाजिक और प्रदर्शन के पहलुओं में संगठित किया।
अखाड़ों का दौर:
बिरहा गायकों ने अखाड़े बनाए, जहाँ गीतों का संग्रह और प्रशिक्षण दिया जाता था। ये अखाड़े सामाजिक एकजुटता का केंद्र भी बने
बिरहा का सामाजिक महत्व
प्रवासी मजदूरों की आवाज:
अंग्रेजों के समय भोजपुरिया मजदूरों को फिजी, मॉरिशस, और कैरीबियाई देशों में ले जाया गया। वहाँ उन्होंने बिरहा गाकर अपने घर-परिवार से बिछड़ने का दर्द बयान किया। ये गीत उनकी पहचान और विरासत बन गए ।
सामाजिक समस्याओं का दर्पण:
भिखारी ठाकुर जैसे कलाकारों ने बिरहा के माध्यम से बाल विवाह, गरीबी, और जातिगत भेदभाव जैसे मुद्दों को उठाया। उनके नाटक बिदेसिया ने प्रवासी मजदूरों के संघर्ष को अमर कर दिया ।
स्त्री-पुरुष संबंधों की गाथा:
बिरहा में प्रेमिका या पत्नी का इंतज़ार, पति के बिदेस जाने की पीड़ा, और सास-बहू के झगड़े जैसे विषय गहराई से उकेरे गए। उदाहरण के लिए:
"कइसे समझावब बुढ़िया मइया के, हमरा बिदेसिया भेजल बा..."
भावनाओं का आईना: बिरहा प्रेम, विरह, दर्द, और खुशी जैसी भावनाओं को व्यक्त करने का एक माध्यम है। यह लोगों को अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरोने और उन्हें साझा करने की अनुमति देता है।
सामाजिक टिप्पणी: बिरहा के गीत अक्सर समाज में व्याप्त मुद्दों पर टिप्पणी करते हैं, जैसे गरीबी, असमानता, और अन्याय। यह लोगों को जागरूक करने और बदलाव की मांग करने का एक तरीका है।
सांस्कृतिक विरासत: बिरहा उत्तर भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं और कहानियों को संरक्षित करता है।
मनोरंजन का साधन: गाँव देहात में बिरहा लोगों के लिए मनोरंजन का एक प्रमुख साधन है। यह लोगों को एकजुट करता है और सामुदायिक भावना को मजबूत करता है।
शिक्षा और जागरूकता: बिरहा के माध्यम से ऐतिहासिक घटनाओं, पौराणिक कथाओं, और स्थानीय किंवदंतियों को बताया जाता है, जिससे लोगों को अपनी जड़ों से जुड़ने का मौका मिलता है।
बिरहा का वैश्विक प्रसार
19वीं और 20वीं सदी में, जब भारतीय मजदूरों को ब्रिटिश उपनिवेशों में काम करने के लिए भेजा गया, तो बिरहा भी उनके साथ विदेशों में पहुँच गया। फिजी, गुयाना, मॉरीशस जैसे देशों में बसे भारतीयों ने अपनी जड़ों को याद रखने के लिए बिरहा को जीवित रखा। इन देशों में बिरहा ने स्थानीय संगीत के साथ मिलकर नई शैलियों को जन्म दिया, जैसे सूरीनाम में बैठक गाना, त्रिनिदाद और टोबैगो में चटनी संगीत, और मॉरीशस में गीत गवई।
बिरहा की संरचना और प्रकार
छोटी बिरहा: दो पंक्तियों वाली खड़ी बिरहा, जिसमें प्रत्येक पंक्ति 26 अक्षरों की होती है।
लंबी बिरहा: कहानी के रूप में फैले गीत, जिनमें विरह की लंबी दास्तान होती है।
ताल और सुर: खरताल, ढोलक, और हारमोनियम का प्रयोग होता है। गायकी में आवाज़ के उतार-चढ़ाव से भावनाएँ बढ़ाई जाती हैं
चैती: चैत महीने (मार्च-अप्रैल) में गाया जाने वाला गीत, जो वसंत के आगमन का जश्न मनाता है।
बारहमासा: यह गीत साल के हर महीने में विधवा के दर्द और अलगाव को व्यक्त करता है।
अल्हा: यह एक वीर गाथा है, जो महाभारत और अन्य ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित होती है।
कजरी: यह बारिश के मौसम में गाया जाने वाला गीत है, जो प्रेम और प्रकृति की सुंदरता को दर्शाता है।
सोहर: यह गीत बच्चे के जन्म के अवसर पर गाया जाता है, जो माँ और नवजात को आशीर्वाद देता है।
वर्तमान में बिरहा की स्थिति
आज के दौर में, बिरहा की लोकप्रियता में कमी आई है। युवा पीढ़ी इसे अपनाने में कम रुचि दिखा रही है, और आधुनिक संगीत के प्रभाव के कारण यह शैली धीरे-धीरे लुप्त हो रही है। इसके अलावा, भोजपुरी संगीत को अक्सर अश्लीलता से जोड़ा जाता है, जिससे बिरहा जैसे पारंपरिक रूपों की छवि भी खराब होती है।
हालांकि, कुछ कलाकार और संगठन इसे जीवित रखने की कोशिश कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, द बिदेसिया प्रोजेक्ट नामक एक परियोजना है, जो बिरहा और अन्य भोजपुरी लोक संगीत शैलियों को संरक्षित करने का प्रयास कर रही है। इस प्रोजेक्ट के तहत, कई वृद्ध कलाकारों के गीतों को रिकॉर्ड किया गया है, जो अन्यथा खो जाते।
सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स पर भी बिरहा के गीत साझा किए जा रहे हैं, जिससे नई पीढ़ी तक यह पहुँच सके। लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
बिरहा को जीवित रखने के उपाय
बिरहा को बचाने और इसे भविष्य की पीढ़ियों तक पहुँचाने के लिए कुछ कदम उठाए जा सकते हैं:
शिक्षा और जागरूकता: स्कूलों और कॉलेजों में बिरहा को पाठ्यक्रम में शामिल करना, ताकि युवा इसे सीख सकें और सराह सकें।
आधुनिक संगीत के साथ मिश्रण: बिरहा को आधुनिक संगीत के साथ जोड़कर नई शैलियाँ बनाना, जिससे युवा पीढ़ी इसे अपनाए।
सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों का सहयोग: सरकार और गैर-सरकारी संगठनों को बिरहा को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम और कार्यशालाएँ आयोजित करनी चाहिए।
कलाकारों को प्रोत्साहन: बिरहा कलाकारों को आर्थिक और सामाजिक समर्थन देना, ताकि वे इस कला को जीवित रख सकें।
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का उपयोग: सोशल मीडिया, यूट्यूब, और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर बिरहा के गीतों को प्रमोट करना।
निष्कर्ष: क्यों ज़रूरी है बिरहा को बचाना?
बिरहा सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि भोजपुरी समाज का सामूहिक स्मृति-कोश है। यह हमें हमारे इतिहास, संघर्षों, और सांस्कृतिक गौरव से जोड़ता है। आज भी गोपाल मौर्य जैसे कलाकार मंचों पर बिरहा गाकर इसे जीवित रखे हुए हैं। ज़रूरत है कि हम इस विरासत को नई पीढ़ी तक पहुँचाएँ – ताकि विरह की यह सुरीली दास्तान कभी ख़ामोश न हो!
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